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एक बूटी के लिए पहाड़ टुटा

शुभी के ब्लॉग में इस बार संकट मोचन से रूठे लोग के बारे में

इस बार देवभूमि की एक अद्भुत गांव के बारे में लिख रही हूं| इस गांव ने हनुमान को खलनायक बना दिया है हनुमान का नाम लेना भी माना है, यहां मारुति कर की एंट्री भी निषेध है, उन अर्धशिक्षित पाठकों को बता दो हनुमान जी का एक नाम मारुति भी है| मैं तो हनुमान जी की फैन हूं…. हर सुबह हनुमान चालीसा कंप्यूटर पर बजाकर दिन की शुरुआत करती हूं| मुझे दुख और आश्चर्य हुआ जब पता चला इस गांव की हनुमान के प्रति अस्वीकार | यहीं से हनुमान जी ने द्रोणगिरी पर्वत का एक बड़ा सा हिस्सा तोड़ कर ले गए थे | घायल लक्ष्मण के लिए संजीवनी बूटी की खोज में आए थे लेकिन जब वह पहचान नहीं सके की कौनसा पौधा संजीवनी है तो पहाड़ को उठाकर उठा ले गये | हनुमान जी थे ही ऐसे तब तुलसीदास हनुमान चालीसा लिखने लगे तो जो भी लिखते अपने आप मिट जाता | तुलसीदास हनुमान की पूजा करने बैठे और पूछे कि उनसे क्या भूल हुई हनुमान जी ने उत्तर दिया मेरे बारे में लिखने से पहले मेरे राम के बारे में लिखना तुलसीदास ने सबसे पहले लिखा श्री गुरु चरण सरोज रज, निजमन मुकुर सुधारी बरनउं रघुबर बिमल जसु, जो दायक फल चारी| फिर हुआ पूरा हनुमान चालीसा|

तो वापस आते हैं हनुमान से क्रोधित उसे गांव द्रोणागिरी में उत्तराखंड में बहुत से पहाड़ और उनकी विशाल चोटिया है और इन सब में है जो अकेला खड़ा है। 7066 meter (23 ,182 feet ) मीटर की ऊंचाई पर द्रोणागिरी पर्वत| इसकी पृ सिद्धि सबसे ज्यादा रामायण के वर्णन से हुई है इसके नीचे है द्रोणागिरी गांव और अगर आप यहाँ हनुमान जी के बारे में कुछ बिना कहे रह सकते हैं तो यहां से जुम्मा द्रोणागिरी ट्रैक पर जाइए जरूर। पर्यटन मंत्रालय ने 2017 का सबसे सुंदर ट्रैक घोषित किया था। इस प्रतिफल देने वाले ट्रैक को सफल बना रहे हैं यहां के लोग जो इन रास्तों से पूरी तरह से परिचित है

 
लेकिन अभी तो हमें इस पर्वत के विध्वंश के बारे में सोचना बाकी है ना…… और वह भी हमारे संकट मोचन हनुमान जी के हाथों…..

लंका युद्ध में जब लक्ष्मण मेघनाथ के हाथों घायल हो गए और मूर्छित थे तब सुशेन वैध ने हनुमान जी को संजीवनी बूटी लाने द्रोणगिरी पर्वत भेज दिया। वहां बद्रीनाथ के पास फूलों की घाटी या वैली ऑफ फ्लावर्स या गंधरमदार्न हिमालय के बीच द्रोणागिरी पर्वत पर हनुमान ने इतने तरह-तरह के जड़ी बूटियां का बहार देखा कि वह परेशान हो गए कि कैसे संजीवनी बूटी पहचानें फिर समय ज्यादा नहीं था तो हनुमान जी ने पर्वत का एक भाग तोड़ कर उड़ कर वापस लंका पहुंच गए। वहां सुशेन ने संजीवनी बूटी से लक्ष्मण को जीवित कर दिया। अभी भी साफ दिखाई देता है जहां से मानो एक भाग गायब है जो हनुमान जी के उसे पहाड़ पर अपनी बर्बरता का प्रमाण छोड़ दिया।

आज तक संजीवनी किसी को नहीं मिला सिर्फ एक कल्पित पौधा रह गया है विज्ञान में भी इसके वास्तविकता का प्रमाण हमसे आंख चुराता रह गया लेकिन तिब्बत के पास इस इलाके के लोगों का मानना है कि संजीवनी बूटी को खोज निकालने के लिए कड़ी प्रयास होनी पड़ेगी तो मिल जाएगी।
द्रोणागिरी पर्वत चमोली जिला में उत्तर पश्चिमी सेंचुरी बोल में नंदा देवी के चारों ओर खड़ी पहाड़ों में से एक है जो नंदा देवी बायोस्फीयर रिजर्व में आती है यह यूनेस्को वर्ल्ड हेरिटेज साइट है यहां बहुत तरह के पेड़ पौधे और जानवर पाए जाते हैं जिनमें कई लूपत्प्राए प्रजाति भी है। यह संरक्षित है और इसकी अद्भुत बायोडायवर्सिटी का हर तरह से बचाया बचाए रखा जाता है।

पर्वतारोहियों के लिए कठिन है पहली बार इस पर 1978 में एक भारत जापान का एक्सपीडिशन चढ़ा था। मेरे जैसी संशयवादी के लिए सबसे हैरानी की बात यह है उस शानदार पर्वत का एक हिस्सा कटा हुआ अभी भी साफ दिखता है। तुलसीदास कैसे इसके बारे में जानती थे ? और वह काटा हिस्सा भी मौजूद है लंका में। तो भूगोल और दन्तकथाओं का यह अद्भुत प्रमाण मुझे भौचक्का कर देता है।

 
फिर मुझे तो वहां के पेड़ पौधों के बारे में बहुत उत्सुकता है खासकर जड़ी बूटियां के लिए। और मेरे अलावा बहुतों को भी। यहां तक की ड्रोन से भी वहां परीक्षण कराए गए हैं। करोड़ो रुपयो के अनुदान अटके पड़े हैं सरकारी फाइलों में। वैसे तो यहां पर्यटन को बढ़ावा दिया जा रहा है लेकिन यहां के लोग और आयुर्वेद के वैज्ञानिक मानते हैं कि एक ना एक दिन यहां संजीवनी जरूर मिलेगी। अभी तो कुछ और जड़ी बूटि मिलते हैं जैसे सुगंधित कुर्च और एक दुर्लभ गुच्छी और कीडा जड़ी जैसे हिमालय का वायगरा माना गया है. बहुत सारे वैज्ञानिक संस्थान जैसे Council of Scientific and Industrial Research (CSIR) and Institute of Himalayan BioResource Technology (IHBT) लगे हुए हैं हर तरह की जड़ी बूटियां के खोज में।

 

तो सबसे विवादस्पद और मायावी संजीवनी बूटी को छोड़कर कीडा जड़ी के बारे में सोचते हैं। कीडा जड़ी या कोर्डिसेप्स दो से दस लाख रुपए में बिकता है। इसे चीन के प्राचीन दवाइयों में भी प्रयोग किया जाता है। यह कुकुरमुत्ता या फन्गस एक कैटरपिलर जैसे कीड़े पर हावी होकर उसमें घुस जाता है और मार डालता है…… फिर खुद उसके सर से निकलता है तस्वीरों में आप देख सकते एक मरा हुआ कैटरपिलर और उसके सर से एक बूटी निकल रहा है जो शायद उससे भी लंबा हो। अब तो कीडा जड़ी भी पहाड़ी जंगलों में मुश्किल से दिखाई देता है। तब ही वैज्ञानिक उसको लैब में बना रहे हैं। लेकिन सोचिए कहीं कभी इस हिमालय की कामोत्तेजक बूटी के बारे में जो वायगरा के बदले ली जा सकती है। और सोचिए उसे रहस्यात्मक गांव के बारे में जो 6 महीने यह गांव बिल्कुल खाली रहता है।

द्रोणागिरी वासी ज्यादातर मार्चा या भूटिया बर्फ से ढके अपने घरों को छोड़ कर नीचे चले जाते हैं और अप्रैल के महीने में वापस अपने घर लौट जा आते हैं। सदियों से भूटिया लोग तिब्बत से व्यापार करते थे लेकिन 1962 के भारत चीन युद्ध के बाद रुक गया है। द्रोणागिरी में टूरिस्ट को बहुत कुछ मिलता है। यहां एक विख्यात ट्रैक जहां राह में चमरी गाय या याक के झुंड दिखाई देते हैं और बागनी मिपात या ग्लेशियर के पास भरल भी। द्रोणागिरी से यह ग्लेशियर 7 किलोमीटर की दूरी पर है। नंदीकुंड और द्रोणागिरी पर्वत के चोटी 4 किलोमीटर की दूरी पर है।

जब से इंसान इस गांव में बसे हैं तब से पर्यावरण के प्रति ध्यान दिया गया है। यहां के पेड़ पौधे हरियाली और पर्वत की सुरक्षा उनका मानव धर्म ही नहीं उनका प्रेम है। और कोई उनकी जरा भी ननिरादर करें तो गांव वाले सह नहीं पाते हैं। इसलिए हनुमान जी भी उनके लिए अपने घर या मंदिर में रखने लायक नहीं समझते हैं। अभी तक द्रोणागिरी के लोग उन्हें क्षमा नहीं कर पाए हैं। द्रोणागिरी पर्वत एक का एक हिस्सा अभी भी कटा हुआ प्रकट होता है। आपको भी दिखाई देगा। और इसकी शोक मनाने इस गांव के लोग रामलीला मानते हैं। जिसमें हनुमान जी का कहीं जिक्र नहीं होता।

बहुत कुछ सुविधाएं बन रही है जुम्मा द्रोणागिरी ट्रैक के लिए जैसे हेलीपैड और यात्रियों की सुविधा। इस जगह के लोग हनुमान जी को तो क्षमा करने से रहे लेकिन आप जाइए जरूर उस पर्वत के सुंदर नजारों को देखने जब तक आपका शरीर ले जा सके |

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