मरने के कुछ हफ्ते पहले मार्क टवेन नहीं लिखा: स्वर्ग के द्वार पर पहुंचने से पहले अपने कुत्ते को बाहर ही छोड़ देना क्योंकि स्वर्ग में पुण्य गिने जाते हैं और इस आधार पर कुत्ते को आपसे पहले अंदर ले लिया जाएगा।
अपनी बीवी के पार्थिव शरीर को आग के हवाले करके वापस आ गया। शायद इस दुख इस तरह न कहकर अगर कह पाता कि मैं अपनी बीवी को दफना कर आया हूं। नहीं सिर्फ यह कह सकता हूं कि मैं अपनी जीवनसाथी का श्मशान घाट में दाह संस्कार करके वापस आया हूं। वह रात 12:30 बजे मर गई थी और हमारे पड़ोसी डॉक्टर को उनका डेथ सर्टिफिकेट बनाना पड़ा आज तक हम सिर्फ चाय या व्हिस्की पीने के लिए मिलते थे। वैसे तो हमारा बेटा भी डॉक्टर है लेकिन आप तो जानते हैं अपने परिवार के सदस्य का डेथ सर्टिफिकेट बनाना गैरकानूनी है। शायद घबराकर और दुख के बीच में कुछ ज्यादा ही बकबक कर गया… माफी चाहता हूं।
हां मेरी बीवी दिल के मरीज थी पर हमने यह नहीं सोचा था उसकी मृत्यु ऐसे अचानक हो सकती है। हुआ ऐसा कि उसका कुत्ता मोती बाहर कुत्तों के पीछे भाग गया था क्योंकि यह कुत्ते हिट में थे और एक कुत्तिया मोती को गार्डन के बाहर से बुला रही थी। बस मोती खिड़की से कूदकर उसका पीछा करने लगा। मेरी बीवी मोती को ढूंढने के लिए रास्तों पर दौड़ने लगी। तभी बारिश शुरू हो गई और मैं मोती की लीश और एक छतरी लेकर उसके पीछे भागा। कुछ देर लगा निराश से मोती को पकड़ने में। वो बहुत दुखी अंदाज से हमें उसे वापस खींच कर लाने दिया। घर आकर मोती ने बहुत सारा पानी पिया और मेरी बीवी उसको तौलिये से सुखाने लगी। मैंने कहा “पहले अपने को सुखाओ। “
बाद में मुझे याद आया की यही तो हार्टअटैक का क्लासिक उदाहरण माना जाता है। एक मोटा इंसान सर्द अंधेरी रात में अपने कुत्ते के पीछे पहाड़ी पर दौड़ रहा है। वो तो बहुत हांफ रही थी और सोने चली गई। कुछ ही क्षणों में उसका दिल धड़कना बंद कर दिया। मैं लिविंग रूम में टीवी पर खबरें देख रहा था। और उसे बहुत भयानक हार्टअटेक्ट हुआ होगा। जब तक मैं वापस बेडरूम आया वो हमारे बीच नहीं रही थी।
शाम 4:00 बजे तक हम उसे श्मशान घाट ले गए। उसकी बहने और पड़ोसी औरतों ने उसको नहलाया और नये लाल साड़ी में ढक दिया। मैंने देखा कि उसके पैर के अंगूठो को एक संग बांध दिया गया था। उसके माथे पर लाल तिलक दमक रहा था। उसके अस्थिर शरीर को बांस एक फ्रेम पर रख दिया गया था। बहुत जल्दी उसका पूरा शरीर फूलों से और फूल मालाओं से ढक गया। मेरे पड़ोसी दोस्त और सह कर्मचारी आ गए थे। शब्दों और मेरे हाथ पकड़ कर मुझे सहानुभूति दे रहे थे। एक पंडित पहुंच गए थे और वह ऐसे मेरी पत्नी की आखरी यात्रा को क्युरेट कर रहे थे जैसे कोई चित्रकला का शो। एक लंबी काली हर्ष में वह जा रही थी और हम सब उसके पीछे श्मशान घाट पहुंचे उदास चेहरों में कुछ चकित भाव भी था:
वो कैसे मर गई जो हरदम इतनी हंसमुख भी थी और व्यंग कसने में तेज। हरदम इतनी मौज मस्ती करती लेकिन अपना काम भी बहुत लग्न से करती थी। एडवरटाइजिंग में कॉपी राइटर थी। जिसका काम ही था सब कुछ मार्केट करना और वो दिल से हर कैंपेन बनाती थी चाहे कोल्ड्रिंक हो चॉकलेट हो या कोयला। शमशान पहुंचने पर उसके शरीर को लकड़ियों पर रखा गया फिर ऊपर से लकड़ियों से ढक दिया गया। सिर्फ उसका सर और दो पाऊ दिख रहे थे। उसके पाऊ उत्तर की दिशा रखे गए थे। पंडित जी नहा कर कपड़े बदल कर जल्दी जल्दी आए और मुझे बताने लगे क्या करना होगा। हमारी इकलौती संतान रजत बिल्कुल दुखी और घबराया खड़ा था। उसके आंखों से आंसू बह रहे थे जिसे वो कभी अपनी हथेली से पूछता या कभी अपनी धोती के कोने से। उसको दो कोरी सफेद धोतिया पहनाया गया था। एक कमल से एक कंधों से। ठीक उसी तरह। मैं चीता की परिक्रमा कर रहा था जैसे-जैसे पंडित जी ने कह रहे थे और मंत्र कह रहे थे। जैसे उसने बताया मैं घी तिल चावल छिनकते रहा। पंडित ने खुद उसके बेजान चेहरे पर घी और चावल का तीन लकीरें खींच दी यह तीन लकीरें यमराज के प्रतीक है: एक मिट्टी के घड़े को अपने कंधे पर रखकर चिता के चारों ओर चल रहा था उस घड़े में एक छेद भी था और पानी गिरता रहा। मैंने उस घड़े को उसके सर के पास जमीन पर फेंक दिया वह टूट गया लेकिन कुछ खास आवाज नहीं हुआ।
अब तो लोगों की सिसकियाँ सुनाई देने लगी थी। लेकिन मुझे न आंसू आए न सिसकी। मैं टकटकी लगाकर अपनी बीवी की चिता देख रहा था और जब मुझे जलती लकड़ी दी गई तो मैं भाग जाना चाहता था।
पंडित जी कह रहे थे
“अब अग्नि से छू नहीं सकती
इसे मत जलाना इसे खत्म करना हे अग्नि
अग्नि इसे ले जाना उस पार जहां इसका इंतजार है”
वगैरा-वगैरा
जो वहां चिता के पास थे लकड़ियों पर घी छिड़क रहे थे और जैसे मैंने जलती लकड़ी से चिता को छुआ चिता भबक कर जल उठा और वो वही थी। पंडित जी और मेरे बेटे रजत ने कपाल क्रिया कर ली। एक नोकीले बांस को उसके खोपड़ी में भोंक दिया ताकि वह टूट जाए और उसकी आत्मा को मुक्ति मिल जाए। आग की लपटें नाच रही थी और हवा में राख उड़ रही थी। मैं नजर फेर लिया उसकी जलती शरीर से। वह लाल कफन जल कर काला होने लगा राख बन गया। पंडित जी ने हमें बताया कि हम घर पहुंचते ही स्नान करें। कल आकर ठंडी चीता से राख और बचे हाड चुन कर ले जाएं सीधा हरिद्वार में गंगा में बहा दे। उस कलश को घर में ही नहीं रखते हैं। अगर मन में हो तो हम सर मुंडवा सकते हैं जैसे रजत।
मैं घर आकर नहाया और बाथरूम से निकला तो मेरा दिल धक से रह गया। मुझे कुत्ते की दर्दनाक सिसकियाँ सुनाई दे रही थी। लेकिन जब मैं उसकी ओर बढ़ा तो वह पीछे हट गया झुकी आंखों में कष्ट।
“रामू जी” मैंने रसोइयों को आवाज दिया। “मोती कुछ खाया?“
रामू जी दौड़कर आया और बोला “मैं उसको कैसे भूल जाता साहब। मां जी के जाने के बाद मुझे पता है कि वह कितना प्यार करती थी। लेकिन वो कल से कुछ नहीं खा रहा है।
मोती 2 साल का सुनहरे बाल वाला काले मुंह और नाक वाला गोल्डन रिट्रीवर है जिसकी सुंदर चमकीली भूरी आंखें सब को मोहित करती हैं। उसके लंबे बाल हर भूरे सुनहरे रंगों में लहराते हैं और उसका घना दुम हरदम नाचता रहता है। हर तरफ से वह एक ऐसी प्राणी लगता है जिसे दिल से लाड प्यार में डुबाया गया हो… और कल से ये प्यार की कमी हो गई… यह प्यारा कुत्ता हमारे पलंग पर मेरी बीवी के साइट सो गया और मैं अपने साइड लेटा सेल फोन का मैसेज पढ़ता रहा। फिर जनाब नीचे कूदकर अपने बड़े गोल बास्केट में गोल होकर लेट गए कभी अपनी दुख भरी आंखों से मेरी और देखता या कभी-कभी हमारे पलंग की परिक्रमा कर लेता।
जब वो कमरे के बाहर गया और बाहर बगीचे मैं जाने वाले दरवाजे के सामने खड़ा हो गया तो मैंने दरवाजा खोल कर उसे बाहर जाने दिया। मैं भी वही खड़े होकर याद करने लगा कैसे मेरी पत्नी मोती को लाड प्यार भरे शब्दों से बुलाती थी वह कुत्ता दौड़ता था खुशी से।
आज वो बगीचे के दीवार के पास चल रहा था फिर वापस अंदर चला गया। मैंने उसका सर सहलाया और उसने मुझे भावपूर्ण नजरों से देखा फिर हर कुर्सी अलमारी और दरवाजे को सूंघने लगा। खासकर उस आराम कुर्सी को जिस पर मेरी मरहूम पत्नी बैठा करती थी।
तो अगले सुबह रामू जी ने आंसू पहुंचते हुए मुझे बताया “मोती आज भी कुछ नहीं खाया: वह बिल्कुल बदल सा गया है। मैं कैसे समझाऊं उसे मां जी कहां चली गई है। हां क्या समझाएं उस नादान को। मोती को फुसलाकर अंडा पराठा खिलाना चाहा लेकिन वह मुंह फेर लिया। मैंने उसके प्रिय गेंद से मेरी पत्नी की तरह खेलना चाहा लेकिन वो गोल होकर लेट गया मानो वो नींद में था या दुखी। उसके ट्रीट और जर्की लाया और मुंह के सामने ले गया तो वो बड़े बेमन से चाट कर मुंह हटा लिया पहले लपक के ले लिया करता था।
रजत आया और बोला शमशान जाकर अपनी मां के चिता से राख और फूल चुनने के लिए जाने का समय हो गया है। मोती इस तरह विचलित होकर कार उछला कि मैंने उसे पीछे के सीट पर बैठने दिया जिस पर रजत कुछ-कुछ नाराज हुआ।
आप कैसे इसको श्मशान ले जाएंगे पापा? हाँ आप यह मत सोचिए कि एक कुत्ते को पता है… वो ठीक हो जाएगा। चलो मोती अंदर जाओ।” रजत ने उसको बाहर घसीट ने की चेष्टा की लेकिन वह टस से मस नहीं हुआ और हम लोग चल पड़े।
मोदी कार के अंदर ही बैठा रहा और हम मेरी पत्नी की राख और बचे हुए हाड दाँत वगैरह को एक कलश में भर लिए। मोती अपने सर को मोड़ कर एक अनोखे अंदाज में दोनों तरफ घुमा रहा था।
मुझे याद आ रहा था मेरी पत्नी कैसे उसको लाढ करती थी।
“आजा मेरा बच्चा, मेरा मोती, मेरा प्यारा मोती, मोती मोटू, मोती बाबा, आजा रे मेरा कुकुर, आजा मम्मा पास तुझे चुम्मी लेना है।
….
मोती बाबा मोती बाबा कहां गए थे।
हम लोग वो कलश लेकर हरिद्वार के लिए चल दिए। मोती पीछे की सीट पर बैठा रहा। जब मैंने पीछे मुड़ कर देखा और मोती के सर को थपथपाते हुए गाते गाते बोला मोती बाबा मोती बाबा कहां गए थे… तो रजत भी हंसने लगा। दूसरे कार में उसकी बहन ने बहनोई चाचा चाची आ रहे थे।
सब लोग मोती को ले जाने पर आपत्ति भी जताई थोड़ा हंसे भी। मोती सबको अपनी बेचैन और दुखी नजरों से देखता रहा… फिर अपनी दुम हल्के से हिला देता यहां वहां अपनी मां को ढूंढता फिर मेरा हाथ थोड़ा सा चाटता।
हरिद्वार में मोती ने पूरी आलू की भाजी खाया। हम उसका पानी का बर्तन भी लाए थे और उसमें से वह खून पानी पिया। और रजत उसको थोड़ा घुमाया जिस दौरान उसने सब कुछ किया। उसका लीश लगाकर मैं उसको नदी किनारे ले गया। वो सीढ़ियों पर बैठ गया और वहां के लावारिस कुत्तों को हिकारत भरी नजर से देखता वो तो भोंके जा रहे थे और आखिर उसको भगा दिया गया। हमारे पंडित जी उसके उसको देखे मुस्कुराते हुए और हमने उसको वहां रहने की इजाजत मांगी। पंडित जी ने पूछा क्या “यह आपकी पत्नी का कुत्ता था… “
“हां और बहुत दुखी है… ” मैंने मोती का सर चलाते हुए कहा।
वैसे तो हम नहीं… लेकिन कोई बात नहीं अच्छा जानवर है और बहुत दुखी है। … उन्हें पता चल जाता है। आपको पता होगा शायद पांच पांडव अपनी आखिरी सफर पर स्वर्ग की ओर जा रहे थे तो एक कुत्ता उनके पीछे पीछे गया था। … जब इन्द्र युधिष्ठिर को अंदर ले जाने आए तो उसने कहा यह कुत्ते के बिना नहीं जाएंगे जाएगा। वह कुत्ता असल में यमराज था।
“बहुत-बहुत धन्यवाद पंडित जी” मैंने कहा और मोती हमारे साथ बैठा रहा और बहते हुए माला फूल और राख को देखता रहा। जैसे जैसे वह दूर जाने लगे वह अपने गले को घुमा कर देखता रहा। हम सब मुस्कुराने लगे उसकी अदाएं देख कर। कई लोग रजत ने भी अपने मोबाइल फोन से मोती के फोटो लेते रहे।
वापस जाते हम सब एक खाने की दुकान पर रुके जहां मोती ने फिर से आलू पूरी खाया। वहां एक आदमी ने अपने को हनुमान बना लिया था। लेकिन मोती लीश से बंद मेरे साथ था। हम रात के 12:00 बजे के करीब दिल्ली पहुंचे। तब तक मोती पीछे की सीट पर सो गया था। जब हम घर पहुंचे तो रजत ने कार रोका और मैंने मोती को बाहर निकाला। वह नीचे कूदा लेकिन प्रतीक्षा करने लगा।
“मीठी मोती मुट्टी आजा आजा… ” मैं चकित होकर मुड़कर देखा क्योंकि यह मेरी पत्नी नहीं थी यह तो रजत था अपनी आवाज बदल कर अपनी मां की नकल उतार रहा था। मोती बड़ी बेताबी से हमपर कूदने लगा और हम दोनों उसके पास नीचे बैठकर एक दूसरे को गले लगाने लगे। और तब मैं रोने लगा। मैं ऐसे हुबक कर रोने लगा कि रजत मुझे खींच कर अंदर ले गया मोती भोकने लगा और हम पर कूदते फांदते अंदर आ गया।